क्या होता है तीन साल का टू व्हीलर इंश्योरेंस ?

Two Wheeler 3 Year Insurance

 

टू व्हीलर एक किफ़ायती यातायात का साधन है, जो भारतीय पुरुषों और महिलाओं द्वारा सामान रूप से इस्तेमाल किया जाता है। सड़क पर टू व्हीलर की सवारी का आनन्द लेने से पहले, भारतीय कानून के अनुसार उसका इंश्योरेंस होना जरुरी है। जब एक नई टू व्हीलर शोरूम से बाहर निकलती  है तो  उसका इंश्योरेंस आमतौर पर एक साल का होता है। गाड़ी चलाते-चलाते समय कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता, और इंश्योरेंस रिन्यू करने का समय हो जाता है। कुछ जागरूक लोग तो समय से टू व्हीलर का इंश्योरेंस रिन्यू करा लेते हैं, लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो काम की आपा -धापी और जिन्दगी की भाग -दौड़ में इंश्योरेंस रिन्यू  करना भूल जाते हैं, और जब तक उसका पता चलता है, तब तक पुलिस चालान काट रही होती है, या गाड़ी की चोरी हो जाती है, या गाड़ी सड़क हादसे का शिकार हो चुकी होती है। कुछ ऐसे ही संभावित क्षणों को ध्यान में रखकर और वाहन चालकों की सुविधा के लिए इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (IRDA) ने लम्बे समय के लिए एक साथ इंश्योरेंस खरीदने को मंजूरी दी है, जिससे टू व्हीलर धारकों को इस तरह की परेशानियों से राहत मिल सके।   

क्या होता है तीन साल का बाइक इंश्योरेंस ? 
किसी भी टू व्हीलर के लिए एक साथ तीन साल के लिए लिया जाने वाला इंश्योरेंस तीन साल का बाइक इंश्योरेंस कहलाता है। 

  • यह तीन साल का थर्ड पार्टी इंश्योरेंस होता है, जिसमें तीन साल के प्रीमियम का पैसा एक साथ पहले साल ही ले लिया जाता है। 
  • एक साल की अवधि वाले इंश्योरेंस के प्रीमियम की दर में अगर इन तीन सालों में  कोई बदलाव होता भी है, तो भी एक साथ तीन साल की अवधि के थर्ड पार्टी इंश्योरेंस का प्रीमियम फिक्स्ड रहता है और किसी भी सूरत में उसमें बदलाव नहीं किया जाता। 
  • सामान्य परिस्थिति में यह इंश्योरेंस बीच में कैंसिल नहीं होता है। लेकिन अगर गाड़ी को इतना नुकसान पहुँचता है कि उसे रिपेयर करना संभव न हो, या फिर गाड़ी चोरी हो जाए, तो ऐसी परिस्थिति में इंश्योरेंस कैंसिल हो जाता है, और इंश्योरेंस के जितने साल बचे होते हैं, उसके प्रीमियम का पैसा लौटा दिया जाता है।
  • यदि कोई चाहता है तो वह तीन साल का कॉम्प्रिहेंसिव इंश्योरेंस प्लान भी साथ में ले सकता है, लेकिन यह जरुरी नहीं है।

यह इंश्योरेंस क्या कवर करता है ?
यह तीन साल के लिए थर्ड पार्टी के प्रति पॉलिसीहोल्डर की जो भी लायबिलिटी बनती है, उसे कवर करता है जैसे सड़क हादसे में घायल होना, मृत्यु हो जाना या थर्ड पार्टी की संपत्ति को किसी भी प्रकार से पहुँचा नुकसान। यदि थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के साथ कॉम्प्रिहेंसिव इंश्योरेंस भी लिया गया है तो वह पॉलिसीहोल्डर को भी संपत्ति का नुकसान होने पर, सड़क हादसे में मृत्यु या विकलांग होने पर, बाइक की चोरी होने पर इंश्योरेंस का कवर देता है।   

तीन साल के टू व्हीलर इंश्योरेंस की खास बातें 

  • इंश्योरेंस कंपनी तीन साल के लिए एक साथ टू व्हीलर को इंश्योरेंस का कवर देती है।
  • तीन साल के इंश्योरेंस के लिए एक साथ बाइक का प्रीमियम भरा जाता है। 
  • इसमें हर साल बाइक का इंश्योरेंस रिन्यू करने की जरुरत नहीं है। 
  • हर साल इंश्योरेंस का डियु -डेट याद रखने और बार- बार इंश्योरेंस कराने के झंझट से बचाता है। 

तीन साल के बाइक इंश्योरेंस से जुडी जानकारियाँ -

प्रीमियम - थर्ड पार्टी इंश्योरेंस का प्रीमियम IRDA तय करता है जिसमें हर साल लगभग 10-20% की बढ़ोतरी होती है। लेकिन एक साथ तीन साल के लिए टू-व्हीलर का इंश्योरेंस लेने पर इस बढ़ोतरी का उसके प्रीमियम पर कोई असर नहीं होता। 
प्रीमियम में डिस्काउन्ट -एक साथ तीन साल के लिए इंश्योरेंस लेने पर इंश्योरेंस कम्पनियाँ डिस्काउन्ट भी देती हैं, जिससे प्रीमियम के पैसे पर बचत होती है। हर साल प्रीमियम रिन्यू करते समय की जाने वाली कागज़ी कार्यवाही और अन्य खर्चों पर इंश्योरेंस कंपनी को जो बचत होता है, उसका फायदा वह डिस्काउंट के रूप में पॉलिसीहोल्डर को देती है।  
नो क्लेम बोनस पर फायदा - तीन साल के लिए एक साथ इंश्योरेंस लेने पर इसका सकारात्मक असर नो क्लेम बोनस पर भी देखने को मिलता है। हर साल मिलने वाले नो क्लेम बोनस के लगातार तीन अलग -अलग  साल के पर्सेंटेज की तुलना अगर एक साथ लिये जाने वाले तीन साल के इंश्योरेंस के नो क्लेम बोनस के पर्सेंटेज से किया जाए तो यह पाते हैं कि एक साथ लिये जाने वाले तीन साल के इंश्योरेंस का नो क्लेम बोनस का पर्सेंटेज आमतौर पर ज्यादा होता है, जो पॉलिसीहोल्डर के लिए फायदेमंद है। इसके अलावा सालाना इंश्योरेंस के प्लान में अगर एक बार भी क्लेम ले लिया गया तो नो क्लेम बोनस जीरो हो जाता है, वहीँ लम्बे समय के प्लान में अगर एक बार क्लेम ले भी लिया तो यह जीरो नहीं होता, बस नो क्लेम बोनस का कुछ पर्सेंटेज कम हो जाता है। 
नो क्लेम बोनस एक तरह का डिस्काउंट है जिसका फायदा अगले साल इंश्योरेंस रिन्यू करते समय पॉलिसीहोल्डर को मिलता है। जितना ज्यादा नो क्लेम बोनस का पर्सेंटेज, उतना ही ज्यादा पॉलिसीहोल्डर को मिलने वाला डिस्काउंट। अगर साल भर इंश्योरेंस कंपनी से कोई क्लेम नहीं लिया जाता तो वह नो क्लेम बोनस देती है। 

इनश्योर्ड डिकलेयर्ड वैल्यू (IDV) से जुडी ध्यान देने योग्य बात – 
IDV टू- व्हीलर की वह अधिकतम क़ीमत है जो इंश्योरेंस कंपनी मुआवज़े के रूप में तब देती है जब टू -व्हीलर की चोरी हो जाती है, या वह इस हद तक दुर्घटनाग्रस्त होती है कि उसको ठीक कर पाना संभव नहीं होता। यह टू -व्हीलर की मार्केट वैल्यू है जिस पर हर साल डेप्रिसिएशन लगता है जिसकी वजह से हर साल टू -व्हीलर की IDV कम होती जाती है।
IRDA के द्वारा तय मानकों के हिसाब से हर साल टू व्हीलर की कीमत पर डेप्रिसिएशन लगता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह डेप्रिसिएशन समान रूप से दोनों तरह के इंश्योरेंस पर लागू होता है, चाहे टू व्हीलर का एक साल के लिए लिया गया इंश्योरेंस हो, या तीन साल के लिए एक साथ लिया गया इंश्योरेंस। इसका मतलब यह है कि एक साथ तीन साल के लिए लिये  गये  इंश्योरेंस में यदि पहले साल को छोड़ दिया जाए तो दूसरे और तीसरे साल इंश्योरेंस क्लेम करने पर डेप्रिसिएशन लगा कर क्लेम का पैसा मिलेगा, जबकि इंश्योरेंस का प्रीमियम पहले साल के IDV के हिसाब से तीन साल के लिए लिया जायेगा।


आमतौर पर देखने में यह आता है कि जैसे -जैसे बाइक पुरानी  होती जाती है, वैसे- वैसे कुछ लोग यह सोंचकर टू व्हीलर का इंश्योरेंस नहीं कराते कि गाड़ी पुरानी हो गई है, क्या फर्क पड़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि टू व्हीलर बिना इंश्योरेंस सड़क पर इस्तेमाल हो रही होती है। कितनी दफा तो चेकिंग के दौरान ऐसे टू व्हीलर पुलिस की पकड़ में आ जाते है, लेकिन कितनी दफा पकड़ में नहीं भी आते। सड़क हादसे के समय यह एक गंभीर खतरा है क्योंकि थर्ड पार्टी को यदि आपके द्वारा सड़क दुर्घटना में नुकसान पहुँचा है तो मुआवज़ा देना आपका दायित्व है। इसलिए तीन साल के लिए एक साथ टू व्हीलर का इंश्योरेंस कराकर निश्चिन्त हो जाना बेहतर है । ऐसी कई चीज़ें हैं जो इंश्योरेंस कंपनी के हाथ में  होती हैं जैसे नो क्लेम बोनस का परसेंटेज  या टू व्हीलर की IDV तय करना।  इसलिए विभिन्न इंश्योरेंस कंपनी के प्लान को ऑनलाइन कम्पेयर  करने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए ।


 

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