इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए हमारे द्वारा किसी सुरक्षा सम्बंधित भूल का फायदा उठाकर साइबर अपराधी डेटा ब्रीच, हैकिंग और कई तरह के साइबर अपराध को अंजाम देते हैं, उसके कारण होने वाले गंभीर नुकसान को कवर करने में साइबर इंश्योरेंस मदद करता है।
साइबर इंश्योरेंस में मुख्य रूप से कवर होने वाली चीज़ें हैं - सॉफ्टवेयर और डेटा को होने वाला नुकसान , इसकी वजह से कारोबार को होने वाला नुकसान, माल्वेयर द्वारा आक्रमण, साइबर स्टॉल्किंग, फिशिंग, सोशल मीडिया में छवि को ख़राब करना, बिना इजाजत कॉपीराइट सामग्री को छाप देना और रुपये -पैसे से जुड़ा ऑनलाइन फ्रॉड।
फर्स्ट पार्टी कवरेज में इंश्योरेंस लेने वाली कंपनी को साइबर क्राइम की वजह से होने वाले लगभग सभी प्रकार के नुकसान को कवर किया जाता है , थर्ड पार्टी कवरेज में साइबर क्राइम की वजह से किसी और पार्टी की तरफ अगर कंपनी की लायबिलिटी बनती है , उसे कवर किया जाता है।
अगर कंप्यूटर सिस्टम को साइबर अटैक से बचाने के लिए अपडेटेड रखा जाता है, जैसे - एंटीवायरस, विंडो फ़ायरवॉल आदि अपडेट रखो, तो इंश्योरेंस कंपनी प्रीमियम में छूट देती है।
यह इंश्योरेंस उन सभी लोगों को लेना चाहिए जो किसी भी तरह का संवेदनशील या कॉन्फिडेंशियल डेटा अपने पास रखते हैं, और उस डेटा के ब्रीच, चोरी या हैकिंग होने पर उनके ऊपर किसी तरह की लायेबिलिटी बनती है।
जैसे इंटरनेट से जुड़े कारोबार अलग -अलग तरह के हैं, उसी तरह उनसे जुड़े अपराध भी अलग- अलग प्रकार के हैं , जैसे – आई. टी. के कारोबार में अलग तरह का साइबर क्राइम होता है , और बैंक जैसे कारोबार में अलग तरह का। इसलिए साइबर इंश्योरेंस में खास तरह की पॉलिसी खास तरह के कारोबारियों को ध्यान में रख कर बनाई गई है, जिसे टेलर मेड इंश्योरेंस कहते हैं।
यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा कारोबार अपने पास किस तरह का संवेदनशील / कॉन्फिडेंशियल डेटा रखता है, उसने किस तरह के सुरक्षा नियम अपना रखे है, डेटा ब्रीच होने का संभावित खतरा कितना है, और अगर डेटा ब्रीच होता है तो कंपनी की किस तरह की लायेबिलिटी बनती है.
यह एक ऑनलाइन अपराध है जिसमें साइबर अपराधी गलत तरीके से लोगों की व्यक्तिगत जानकारियाँ इकटठी करता है, जिसे वह उनको ब्लैक मेल करने और पैसा वसूलने के लिए इस्तेमाल करता है।