500 रुपये में 5 लाख के मेडिक्लेम का सच

Mediclaim Insurance

 

उम्र के तीस वर्ष के पायदान तक पहुँचते -पहुँचते व्यक्ति को हेल्थ इंश्योरेंस  का महत्व समझ में आने लगता है। चाहे अपने से सीनियर कुलीग को देखकर, या अपने दोस्तों की हेल्थ इंश्योरेंस  की प्लानिंग की चर्चा को सुनकर, या वाइफ की डिलीवरी पर लगे खर्चे जैसे पर्सनल अनुभव को देखकर। इस समय तक सैलरी भी ठीक-ठाक रेंज में होती है और कार का लोन, और अपने खुद के फ्लैट की प्लानिंग भी चल रही होती है, बाकी खर्चे सो अलग, और ऐसे में मेडिक्लेम का अतिरिक्त ख़र्चा एडजस्ट  करना थोड़ा मुश्किल हो रहा होता है। ऐसे में कोई अगर कहे कि 500 रुपये में 5 लाख का मेडिक्लेम संभव है तो क्या आप यकीन करेंगे? एक महीने में 2 से 3 बार 500 रुपये का पिज़्ज़ा तो आजकल कोई भी खा लेता है। फिर अगर 500 रुपये में मेडिक्लेम मिल जाए तो क्या बात है। 
तो आइए नज़र डालते हैं एक 30 साल के युवक के लिए 500 रुपये में 5 लाख रुपये के मेडिक्लेम पॉलिसी पर, जो मेट्रो शहर में रहता है। बाजार में कई ऐसी हेल्थ इंश्योरेंस  कम्पनियाँ हैं जो इस रेंज में मेडिक्लेम पॉलिसी उपलब्ध कराती हैं। इसके बेसिक प्लान में मिलने वाली सुविधाएँ हैं – 
अस्पताल में हर तरह के कमरे की सुविधा, अस्पताल में भर्ती होने के 30-40 दिन पहले तक का, और डिस्चार्ज के बाद 60-90 दिन तक का इलाज का खर्चा। नो क्लेम बोनस के तौर पर लगभग 5% से 20% तक सम ऐशयॉर्ड  में बढ़ोतरी, कुछ इंश्योरेंस  कंपनी साल में एक बार तक रेस्टोरेशन बेनिफिट भी देती हैं। इसमें  साल भर के भीतर अगर सम ऐशयोर्ड ख़त्म हो जाता है, तो इंश्योरेंस   कंपनी दोबारा उस साल के लिए, किसी और बीमारी से लड़ने के लिए सम ऐशयोर्ड उपलब्ध करा देती है। अगर दो साल तक कोई क्लेम नहीं किया है, तो उसके अगले साल एक बार फ्री हेल्थ चेक अप देती है। तीन से चार साल बाद प्री-एग्सिसटिंग बीमारियाँ भी शामिल की जाती हैं। इसमें आयुर्वेदिक पद्धति से होने वाले इलाज, “आयुष” की स्वास्थ्य सुविधा का भी लाभ उठाया जा सकता है। इसके अलावा अन्य मिलने वाली सुविधाओं की सूची लम्बी है।

बाजार में मौजूद हेल्थ इंश्योरेंस  कंपनियों के प्लान को देखकर यह कहा जा सकता है कि मेट्रो शहर में रहने वाले 30 साल के स्वस्थ युवक को 5 लाख रुपये सम ऐशयोर्ड का बेसिक प्लान 500 रुपये के आस- पास मिल जाता है। अब यदि यही प्लान एक 40 वर्षीय स्वस्थ युवक के लिए लेना है जो मेट्रो शहर में रहता है तो यह देखने में आता है कि फिर यह प्लान 500 रूपया हर महीना न होकर 600-700  रूपया हर महीना का प्लान बन जाता है, और मेडिक्लेम में मिलने वाली सुविधाओं में भी कमी आनी शुरू हो जाती है। जैसे नो क्लेम बोनस, रेस्टोरेशन बेनिफिट में कमी या न मिलना, और प्री- एक्सिस्टिंग डिजीज को शामिल करने की अवधि भी बढ़ जाती है। 

इसके अलावा भी अनेक पहलू हैं जो सम ऐशयोर्ड और प्रीमियम पर असर डालते हैं। अगर मेट्रो शहर में रहने वाला 30 साल का युवक अपनी 28 साल की पत्नी को प्लान में शामिल करता है तो 5 लाख के सम ऐशयोर्ड के लिए उसे लगभग 750 रुपये देने पडेंगे। और यदि इसमें 3 साल का बेटा और 1 साल की बेटी को भी शामिल किया जाता है तो यह 5 लाख के सम ऐशयोर्ड का बेसिक प्लान 800 से 900 रुपये तक का हो जाता है।

एक और परिस्थिति में यदि मेट्रो शहर में रहने वाला युवक अपनी 58 साल की माँ को अपने 5 लाख सम ऐशयोर्ड वाले प्लान में शामिल करता है, तो कोई भी कंपनी 500 रुपये में ऐसा कोई प्लान उपलब्ध नहीं कराती है। 

वहीँ अगर कोई भी महंगा प्लान लम्बे समय के लिए एक साथ लिया जाता है तो उसमें मिलने वाले बेनिफिट भी ज्यादा होते हैं, और प्रीमियम का पैसा भी कम पड़ता है। इससे यह पता चलता है कि अधिक समय के लिए लिया गया प्लान सस्ता और बेहतर होता है।

अब अगर बात मेट्रो शहर से हटकर किसी अन्य शहर की करें तो इन शहरों में रहने वाला एक 30 साल का युवक अगर 5 लाख के सम ऐशयोर्ड का बेसिक प्लान लेता है, तो यह प्लान उसे 400 रुपये तक का मिल जाता है, जो बड़े शहरों के मुकाबले सस्ता है। 
 
हेल्थ इंश्योरेंस  लेने का आधार सिर्फ कम प्रीमियम नहीं होना चाहिए। इसके अलावा कई ऐसी जरुरी बातें हैं जो मिलने वाले कवरेज पर असर डालती है, और यदि हेल्थ इंश्योरेंस  लेते समय इनका विचार नहीं किया तो क्लेम के समय दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे –

हेल्थ इंश्योरेंस  में सब लिमिट - क्लेम में मिलने वाले पैसे पर हेल्थ इंश्योरेंस  का सब लिमिट बड़ा असर डालता हैं। इसमें दो तरह के सब लिमिट होते हैं - पहला रूम- रेंट में कैपिंग, और दूसरा कुछ चुनिंदा बीमारियों या इलाज की सुविधाओं में कैपिंग।  हॉस्पिटल के रूम रेंट में कैपिंग को समझना इसलिए जरुरी है क्योंकि इलाज से जुड़े  तमाम  खर्चों का सम्बन्ध सीधे अस्पताल के कमरे के किराये से जुड़ा है जैसे - डॉक्टर की फीस,  सर्जरी, दवाई का खर्चा, टेस्ट का खर्चा आदि। अगर रूम- रेंट में कैपिंग 4000 रूपया है, और कमरा 5000 रुपये का ले लिया है, तो अस्पताल अपने इलाज से जुड़े बाकी खर्चे जैसे डॉक्टर की फीस,  सर्जरी, दवाई का खर्चा, टेस्ट का खर्चा सब कुछ उसी अनुपात में ज्यादा चार्ज करता है। अगर पॉलिसीहोल्डर को इस बात की जानकारी नहीं है, तो इसका पता उसे बिल बनने के बाद चलता है। लेकिन इंश्योरेंस  कंपनी बिल के क्लेम का पैसा कैपिंग के हिसाब से ही देती है, मतलब जितना 4000 रूपये के हिसाब से पैसा बनता है, वह देती है।  
इसी तरह कुछ चुनिंदा बीमारियाँ ऐसी हैं जिनके इलाज में कैपिंग का लिमिट होता है जैसे मोतिया बिन्द, पथरी का ऑपरेशन आदि। इलाज में सब लिमिट से ज्यादा का खर्चा आने पर भी क्लेम कैपिंग लिमिट जितना ही मिलता है। इसलिए वह प्लान लेना चाहिए जिसमें कैपिंग नहीं होता। जिस प्लान में सब लिमिट नहीं होता, उसका प्रीमियम तो ज्यादा होता है, लेकिन अगर लॉन्ग रन में देखा जाय तो वह कम प्रीमियम वाले कैपिंग के प्लान से सस्ता पड़ता है। सब लिमिट इंश्योरेंस  में मिलने वाले कवरेज को लिमिट में बांध देता है।

वेटिंग पीरियड- पॉलिसी खरीदने से पहले जो बीमारियाँ  पॉलिसीहोल्डर को होती हैं, उन्हें प्लान में शामिल करने के लिए इंश्योरेंस  कंपनी एक समय अवधि तय करता है जिसे वेटिंग पीरियड कहते हैं। जिस इंश्योरेंस  कंपनी का वेटिंग पीरियड कम होता है, उसे लेना बेहतर है।

इंश्योरेंस  कंपनी की विश्वसनीयता और क्लेम सेटलमेंट रेश्यो - कम प्रीमियम वाला हेल्थ इंश्योरेंस  लेते समय यह जरूर देख लें कि इंश्योरेंस  कंपनी कितनी विश्वसनीय है, बाजार में कितने समय से काम कर रही है, और लोगों का रिव्यु उसके बारे में कैसा है। साल भर में उसने कितने क्लेम पास किये और ग्राहक अपने क्लेम से कितना खुश है। ( क्लेम सेटलमेंट रेश्यो देखने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पेज पर जाए )

नेटवर्क हॉस्पिटल -हेल्थ इंश्योरेंस  कंपनी के नेटवर्क में आने वाले अस्पतालों की सूची कंपनी के वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। पॉलिसी लेते समय यह देखना जरुरी है कि आपके शहर के जाने- माने अस्पताल नेटवर्क हॉस्पिटल में हैं या नहीं। जिन बीमारियों का होने का खतरा है, या जो बीमारियाँ परिवार में पहले से चली आ रही हैं उन बीमारियों से जुड़े सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल नेटवर्क में होने चाहिए।

वर्तमान स्वास्थ्य का स्तर - अगर व्यक्ति धूम्रपान करता है, नशे का सेवन करता है, वजन बहुत ज्यादा है, शूगर, बी. पी. से पीड़ित है तो ऐसे व्यक्ति को हेल्थ इंश्योरेंस   के लिए अधिक प्रीमियम देना होगा।   

हेल्थ इंश्योरेंस  के साथ जुड़े अन्य फायदे - बीमा कंपनी के साथ लगातार जुड़े रहने पर इंश्योरेंस  कंपनी अन्य फायदे भी देती है, जैसे - नो क्लेम बोनस, कम्पलीट बॉडी चेक अप आदि । हेल्थ इंश्योरेंस  अगर साल भर तक क्लेम नहीं किया जाता तो इंश्योरेंस  कंपनी नो क्लेम बोनस देती है। यह बोनस का पैसा अगले साल के सम ऐशयोर्ड पर जुड़ जाता है, जिससे उतना ही प्रीमियम देने पर कवरेज की राशि बढ़ जाती है। वह इंश्योरेंस  कंपनी बेहतर है जो ज्यादा से ज्यादा नो क्लेम बोनस का पर्सेंटेज देती है।  इसी प्रकार कुछ बीमा कंपनी के प्लान में मुफ़्त कम्पलीट  बॉडी चेक-अप भी होता है।  

हेल्थ इंश्योरेंस  में एक्सक्लूज़न और को- पेमेंट –
इंश्योरेंस  प्लान लेते समय पॉलिसी डॉक्यूमेंट ध्यान से पढ़ना जरुरी है, खास तौर पर एक्सक्लूज़न और को- पेमेंट का कॉलम। यदि प्लान में को-पेमेंट का कॉलम है तो इसका मतलब है क्लेम का कुछ हिस्सा पॉलिसीहोल्डर को अपनी जेब से भरना पड़ेगा।  
एक्सक्लूज़न का मतलब है वह बातें जो प्लान में शामिल नहीं है जैसे मैटरनिटी से जुड़ा खर्चा, एच आई वी, जन्मजात बीमारी, आँख और दांत से जुड़ा इलाज, आत्महत्या से जुडी चोट का इलाज, कॉस्मेटिक सर्जरी, हेल्थ असेसमेंट आदि।

जैसा कि हमने पाया, हेल्थ इंश्योरेंस  के प्रीमियम और सम ऐशयोर्ड पर उम्र, समय सीमा, लोकेशन जैसी कई बातें असर डालती हैं। इसके अलावा, पहले से मौजूद बीमारी, अनुवांशिक बीमारी, जेंडर, वर्तमान स्वास्थ्य की स्थिति और ऐड ऑन भी इसपर असर डालने का काम करते हैं। हेल्थ इंश्योरेंस  में प्रीमियम और सम ऐश योर्ड को बिलकुल फिक्स्ड नहीं कहा जा सकता, व्यक्ति की जरुरत के हिसाब से वही प्लान अपना आकर और स्वरुप बदलता रहता है।
 

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