टैक्स बचाने के लिए ELSS और इंश्योरेंस में कौन बेहतर ?

better way to save income tax ELSS or Insurance

आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति अपने पैसे से बेहतर मुनाफ़े की इच्छा रखता है, इसलिए उन संभावनाओं को तलाशता रहता है जहाँ उसका इन्वेस्टमेन्ट सुरक्षित भी रहे और किसी किसी प्रकार से मुनाफा भी कमा कर दे अब अगर मुनाफा होगा तो वह इनकम टैक्स को भी आकर्षित करेगा। यहाँ हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि अगर हम अपना इनकम टैक्स बचाना चाहते हैं, तो निवेश के दो साधन ELSS और इंश्योरेंस में से कहाँ निवेश करना बेहतर होगा।

ELSS क्या है ?

  • ELSS का मतलब है इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम। इसको टैक्स बचाने वाला म्युचुअल फण्ड भी कहा जाता है।
  • इसमें डेढ़ लाख रुपये तक के निवेश पर  इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।
  • 80 C के तहत जितनी भी टैक्स बचाने वाली स्कीम हैं जैसे पीपीएफ, इंश्योरेंस की स्कीम आदि, उनमें ELSS ही है जिसमें इनकम टैक्स बेनिफिट के साथ सबसे ज्यादा रिटर्न मिलता है।
  • इसमें पैसा बाजार में लगाया जाता है। व्यक्ति अगर चाहे तो कितना भी पैसा इसमें लगा सकता हैं लेकिन इनकम टैक्स में छूट सिर्फ डेढ़ लाख रुपये तक ही मिलती है।

इंश्योरेंस क्या है ?

  • इंश्योरेंस रिस्क को कवर करता है। यहाँ इंश्योरेंस का मतलब है यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP)।
  • ULIP दो तरह से काम करता है। इसमें जो भी पैसा प्रीमियम के तौर पर दिया जाता है, उसका कुछ हिस्सा व्यक्ति को इंश्योरेंस का कवर देता है, और बाकी पैसा फंड्स में निवेश किया जाता है जैसे डेब्ट, इक्विटी या फिर दोनों में, जिसे फण्ड मैनेजर्स के द्वारा संचालित किया जाता है।
  • इसमें फंड्स  को बदलने की सुविधा भी दी जाती है जिसे फंडस स्विचिंग या पोर्टफोलियो बदलना कहते हैं।
  • इसका रिटर्न बाकी इंश्योरेंस उत्पाद के मुकाबले बेहतर माना जाता है।
  • ULIP में प्रीमियम के तौर पर जो भी पैसा दिया जाता है उसे इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।

इनकम टैक्स बचाने के लिये ELSS और ULIP में कौन बेहतर?

यह जानने के दोनों की तुलना विभिन्न स्तर पर करना जरुरी है।

  • प्रोडक्ट की बनावट - ULIP जहाँ इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट दोनों है, वहीँ ELSS पूरी तरह से इन्वेस्टमेंट है। ELSS में पैसा लगाने का उद्देश्य निवेश पर अच्छा रिटर्न प्राप्त करना है। वैसे तो इंश्योरेंस के अंतर्गत कई उत्पाद बाजार में मौजूद हैं, लेकिन ULIP में निवेश तभी किया जाता है जब व्यक्ति इंश्योरेंस के साथ अच्छे रिटर्न की इच्छा रखता है।
  • लॉक -इन पीरियड - लॉक -इन पीरियड वह तय समय सीमा होती है जिसके भीतर निवेश का पैसा निकला नहीं जा सकता। एक ओर जहाँ ULIP का लॉक -इन पीरियड पाँच साल है, वहीँ ELSS का सिर्फ तीन साल। इसका मतलब यह है कि ELSS में पैसा ज्यादा जल्दी लिक्विडेट करने की सुविधा है जिसके कारण इसमें हर तीन साल में फंड्स बदल कर रीइन्वेस्ट किया जा सकता है।
  • पैसा निवेश करने की सुविधा - इंश्योरेंस में पैसे का निवेश  प्रीमियम के तौर पर किया जाता है जिसे एक निश्चित अंतराल में लगातार इंश्योरेंस कंपनी को तब तक देते रहना है जब तक पॉलिसी जारी रहती है। यह साल में एक बार, दो बार ,चार बार या हर महीने प्रीमियम भरने की सुविधा देता है। वहीँ अगर ELSS की बात की जाए तो इसमें एक छोटी रकम से भी इन्वेस्टमेंट की शुरुवात की जा सकती है और अपनी सुविधा के अनुसार पैसा कभी भी जमा कराया जा सकता हैं।  अगर नियमबद्ध तरीके से इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं तो SIP का सहारा लिया जा सकता है।  SIP का मतलब  है सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान। इसमें इन्वेस्टर एक तय समय में एक निश्चित धनराशि अपने स्कीम में लगाता रहता है।
  • पैसे के निवेश का माध्यम - ULIP मैं पैसा डेब्ट, इक्विटी या दोनों में दोनों में लगाया जा सकता है , वहीँ  ELSS में पैसा पूरी तरह से इक्विटी में लगाया जाता है, जिसकी वजह से रिटर्न अच्छे मिलते हैं।  डेब्ट में पैसा लगाने से फिक्स्ड इनकम मिलता है, और निवेश का पैसा सुरक्षित रहता है, वहीँ इक्विटी में पैसा लगाना मतलब शेयर मार्किट में पैसे का निवेश। शेयर मार्किट में रिस्क तो है लेकिन उसी हिसाब से  रिटर्न भी अच्छे मिलते हैं। 
  •  निवेश के पैसों पर लगने वाले अतिरिक्त खर्चे – ULIP को मैनेज करने के लिए इन्शुरन्स कंपनी कई तरह के शुल्क लेती है जैसेपॉलिसी जारी करने और यूनिट बाँटने का चार्ज,फण्ड को मैनेज करने का चार्जफंडस स्विचिंग चार्ज, पॉलिसी को मैनेज करने में की जाने वाली कागज़ी कार्यवाही का चार्जअगर बीमाधारक इंश्योरेंस कंपनी के अनुमानित आयु से कम जीवित रहता है तो उसे कॉम्पन्सेट  करने का चार्ज, अगर पॉलिसी सरेंडर किया जाता है तो उसका चार्ज इसकी  वजह से निवेश किया गया पैसा थोड़ा कम हो जाता है। वहीँ अगर ELSS की बात करें तो इसमें सिर्फ एक चार्ज लगता है जिसे फण्ड मैनेजमेंट फीस या एक्सपेंस रेश्यो कहते हैं।
  • पारदर्शिता - ELSS में निवेश किये गये पैसे पर 3 % फीस कटती है, और बाकि पैसा फंड्स में इन्वेस्ट किया जाता है।  इस पारदर्शिता के चलते यह पता लगाया जा सकता है कि कितना पैसा निवेश किया गया है और उससे रिटर्न  कितना मिला है।  वही दूसरी और ULIP में कई तरह के चार्जेस हटाने के बाद पैसा निवेश किया जाता है।  यह शुल्क  शुरुवाती वर्षों में अधिक होता है जो बाद में कम होते जाते हैं। इन सब कारणों से इसमें पारदर्शिता नहीं रहती और वास्तव में कितना पैसा निवेश किया गया है, यह पता लगाना मुश्किल होता  है।   
  • लॉक इन पीरियड से पहले सरेंडर करने के परिणाम

ELSS में तीन साल का लॉक इन पीरियड होता है जिसमें पैसा नहीं निकला जा सकता क्योंकि उन पैसों से म्यूच्यूअल फण्ड के यूनिट ख़रीदे जाते हैं जिनका लॉक इन पीरियड तीन साल का होता है।  इक्विटी में निवेश करने पर लम्बे समय  के कैपिटल गेन पर टैक्स नहीं लगता। इसलिए इसमें किया गया निवेश और उससे मिलने वाले फायदे पर कोई टैक्स नहीं लगता है।

अगर ULIP में लॉक इन पीरियड के दौरान पॉलिसी को सरंडर किया जाता है तो सबसे पहले  इंश्योरेंस कवर रोक दिया जाता है। जो भी टैक्स का फायदा  इस बीच ULIP से  मिल चुका है, वह रिवर्स हो जाता है और उस पर दोबारा  टैक्स लगाया जाता है। पॉलिसी का जो भी  सरंडर वैल्यू बनता है वह पाँच साल बाद मिलता है और वह भी कई सारे चार्जेज़ काटने के बाद। ULIP में मिलने वाला मैच्योरिटी बैनिफिट तभी टैक्स फ्री होता है अगर पॉलिसीहोल्डर की मृत्यु हो जाती है।

कुल मिलकर देखा जय तो ELSS और ULIP में यही समानता है कि दोनों टैक्स बचाते हैं और दोनों पैसों का निवेश करते हैं। हमें अपने लिए इंश्योरेंस चाहिए या इन्वेस्टमेंट यह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है क्योंकि दोनों के संचालन और नियमों में फर्क है। एक  सिर्फ पैसा बढ़ाता है तो दूसरा पैसे के साथ जीवन को इंश्योरेंस भी देता है। अगर इंश्योरेंस और रिटर्न दोनों अधिक मात्रा में चाहिए तो काफ़ी कम प्रीमियम में मिलने वाला टर्म इंश्योरेंस प्लान लेना चाहिए और साथ ही ELSS में पैसा निवेश करके अधिक रिटर्न का लाभ उठाना चाहिए। टर्म इंश्योरेंस भी बाकी इंश्योरेंस की तरह 80 C के तहत  इनकम टैक्स में छूट देता है। अगर रिटर्न  की बात की जाए तो ULIP हो चाहे ELSS, दोनों ही दस से पन्द्रह साल के अंतराल में बेहतर रिटर्न देना शुरू कर देते हैं । इसलिए लॉक इन पीरियड के बाद दोनों को ही नहीं छोड़ना चाहिए और समय दे कर पैसे को बढ़ने देना चाहिए।

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