कैंसर के लिए अलग से इंश्योरेंस प्लान क्यों खरीदना चाहिए?

Why you should take cancer insurance separate from insurance?

कैंसर क्या होता है ?

कैंसर एक घातक बीमारी है। यह शरीर के भीतर किसी भी हिस्से में हो सकता  है।  आम तौर पर इस बीमारी के शुरुवाती लक्षण कुछ खास नहीं होते, इसलिए बीमारी का पता अक्सर देर से चलता है। इसके चार स्टेज होते हैं जिसमें पहले और दूसरे स्टेज का कैंसर शुरुवाती माना जाता है और तीसरा और चौथा स्टेज एडवांस। बीमारी के इलाज से जुड़ा खर्चा बहुत महँगा है, और  बीमारी के इलाज में थोड़ी सी देरी भी जानलेवा साबित हो सकती है। इस बीमारी की जाँच लगातार करवानी  पड़ती  है क्योंकि यह बहुत तेजी से फैलता  है, और इलाज के बाद भी इसके बार -बार होने की संभावना बनी रहती है। डॉक्टरों के मुताबिक इलाज के मामले में व्यक्ति को बहुत सतर्क रहने की जरुरत है और बीमारी दोबारा आक्रमण  कर पाए इसके लिए लगातार जाँच करवाते रहना जरुरी है। ब्रेन ट्यूमर, ब्लड कैंसर , लंग कैंसर , ब्रैस्ट कैंसर इसके कुछ प्रकार हैं। 

कैंसर के इलाज में कितना पैसा लगता है?

आमतौर पर  कैंसर के इलाज मैं 2-3 लाख रुपये से लेकर 50 लाख तक का खर्चा जाता है। यह कैंसर के अलग- अलग स्टेज और कैंसर के प्रकार पर निर्भर करता है। बीमारी के इलाज में इतना पैसा लगता है कि घर की पूरी अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है, लेकिन फिर भी पैसों की जरुरत पूरी नहीं होती। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें बीमार और उसका परिवार अपने-  अपने स्तर पर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लड़ाई एक साथ लड़ता है।

कैंसर के इलाज के लिए अलग से इंश्योरेंस क्यों चाहिए ?

वैसे तो बीमारी से लड़ने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस है जिसमें क्रिटिकल इलनेस राइडर की सुविधा भी मिलती है लेकिन कैंसर के इलाज के लिए खास तौर पर बनाये गए इंश्योरेंस पॉलिसी इस बीमारी में पैदा होने वाली कई तरह की परिस्थिति और उनसे जुडी जरूरतों के मुताबिक बना है। कैंसर के इलाज में होने वाले खर्चों से निपटने के लिए यह प्लान  बगैर ज्यादा कागज़ी कार्यवाही के एक साथ काफी पैसा पॉलिसीहोल्डर को जारी कर देता है ताकि इलाज में किसी प्रकार की कमी न रहे। यह प्लान ऐसी परिस्थितियों के लिए सर्वथा उपयोगी है क्योंकि इसमें कई प्रकार के अन्य फायदे भी मिलते है।

कैंसर इंश्योरेंस प्लान के फ़ायदे-

  • पॉलिसी  की अवधि - यह हेल्थ इंश्योरेंस के मुकाबले ज्यादा लम्बे समय के इंश्योरेंस प्लान होते हैं। इसमें पॉलिसी की अवधि को दो तरह से देखा जाता है। कुछ इंश्योरेंस कंपनी के प्लान का टर्म फिक्स होता है, जैसे मान लीजिए किसी कंपनी का प्लान 30 साल का है।  इसका मतलब यह है कि अगर आप 25 साल की उम्र में यह प्लान खरीद रहे हैं तो पॉलिसी 55 साल की आयु में ख़त्म हो जायेगी। वहीँ कुछ इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा पॉलिसी की अवधि को व्यक्ति की अधिकतम आयु सीमा से देखा जाता है। जैसे- मान लीजिए किसी इंश्योरेंस कंपनी ने पॉलिसी की अवधि के लिए व्यक्ति की अधिकतम आयु सीमा 70 साल निश्चित की है। इसका मतलब यह है कि अगर व्यक्ति 30 साल की उम्र में यह प्लान खरीदता है तो उसके 70 साल की आयु होने तक पॉलिसी की अवधि रहेगी, जो इस व्यक्ति की आयु के हिसाब से 40 साल है।  
  • सम ऐश्योर्ड की राशि- इस इंश्योरेंस में बाकी हेल्थ इंश्योरेंस के मुकाबले सम ऐश्योर्ड का पैसा ज्यादा है। आम तौर पर कैंसर इंश्योरेंस प्लान में इलाज के लिए सभी इंश्योरेंस कंपनियां 10 लाख से 50 लाख रुपये तक का सम ऐश्योर्ड देती हैं। कैंसर के कई प्रकार होते हैं और इस बीमारी में कई स्टेज आते हैं। इन बातों को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि इस बीमारी के इलाज में 2.5 -3 लाख रुपये से लेकर 50 -55  लाख रुपये तक का खर्चा आ जाता है।
  • पैसा जारी करने का सरल तरीका - अगर बीमारी शुरुवाती दौर में है तो इंश्योरेंस कंपनी सम ऐश्योर्ड का 20 से 30 % पैसा एक साथ जारी कर देती है। अगर बीमारी एडवांस स्टेज में है तो इंश्योरेंस कंपनी एक साथ सम ऐश्योर्ड का 100% जारी कर देता है और पॉलिसी वहीं पर ख़त्म हो जाती है। अगर बीमारी के शुरुवाती दौर में सम ऐश्योर्ड का कुछ पैसा इंश्योरेंस कंपनी ने पहले ही दे दिया है तो, तो एडवांस स्टेज में पैसा जारी करते समय, सम ऐश्योर्ड से उतना पैसा कम करने के बाद बाकी बचा हुआ पैसा दिया जाता है। जैसे मान लीजिये 40 लाख का  इंश्योरेंस प्लान है जिसमें से 15 लाख रुपये बीमारी के शुरुवाती दौर में दिये जा चुके हैं, तो एडवांस स्टेज में इंश्योरेंस कंपनी बाकी के बचे 25 लाख रुपये ही जारी करेगी। जैसे ही डॉक्टरी जाँच में इस बीमारी के होने का पता चलता है इंश्योरेंस  कंपनी इलाज के लिए पैसा जारी कर देती है, जिससे मरीज़ के इलाज में देरी नहीं होती ।
  • सम ऐश्योर्ड पर इंडेक्सिंग की सुविधा -  कैंसर से जुड़ा इलाज बहुत महँगा है। आज के समय के हिसाब से तय किया गया सम ऐश्योर्ड जरुरी नहीं कि आने वाले दस सालों में भी वह रकम इलाज के लिए काफी हो। कुछ इंश्योरेंस कम्पनियों के कैंसर प्लान में बीमारी के लिए मिलने वाला सम ऐश्योर्ड फिक्स होता है, लेकिन कुछ कंपनियाँ  सम ऐश्योर्ड पर इंडेक्सिंग की सुविधा देती हैं । फिक्स्ड सम ऐश्योर्ड का मतलब यह है कि प्लान का टर्म चाहे 10 साल का हो चाहे 40 साल का, अगर 20 लाख का  सम ऐश्योर्ड तय है तो वह आखिर तक 20 लाख ही रहेगा। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि 40 साल के लम्बे समय में रुपये की कीमत तो कम  होती  जाएगी वहीँ इलाज में लगने वाला खर्चा महँगा होता जायेगा । इसलिए कुछ इंश्योरेंस कंपनियाँ  हर साल  सम ऐश्योर्ड पर एक फिक्स परसेंटेज के हिसाब से इंडेक्सिंग करती हैं जिससे  सम ऐश्योर्ड का पैसा बड़ता जाता है। पॉलिसी की  अवधि के बीच  में अगर कैंसर के लिए क्लेम किया जाता है तो उसी साल सम ऐश्योर्ड पर इंडेक्सिंग रुक जाती है और सम ऐश्योर्ड के लिए तय पैसा  वहीं पर फिक्स हो जाता है। जैसे मान लीजिये 20 लाख के  सम ऐश्योर्ड पर हर साल इंडेक्सिंग लगने पर 10 साल में सम ऐश्योर्ड बड़कर 30 लाख रुपये हो जाता है।  फिर अचानक कैंसर की बीमारी का पता चलने पर इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम लिया जाता है। तो उस साल के बाद पैसे पर इंडेक्सिंग लगनी बंद हो जाती है और सम ऐश्योर्ड 30 लाख रुपये फिक्स हो जाता है।
  • प्रीमियम भरने से छूट- कुछ इंश्योरेंस कंपनियाँ  ऐसी हैं जो पहले या दूसरे स्टेज के कैंसर का  पता चलते है आगे के इंश्योरेंस के प्रीमियम माफ़ कर देती हैं, वहीँ कुछ कंपनियाँ  शुरुवात में तो नहीं पर बीमारी का एडवांस स्टेज आने पर आगे के सभी प्रीमियम माफ़ कर देती हैं।
  • इंश्योरेंस के साथ इनकम -कुछ इंश्योरेंस प्लान ऐसे हैं जिनमें कैंसर के एडवांस स्टेज में सम ऐश्योर्ड का कुछ प्रतिशत पैसा इनकम के तौर पर दिया जाता है, जो ऐसे समय में एक बड़ा सहारा है। जैसे - अगर किसी के पास 20 लाख का कैंसर इंश्योरेंस प्लान है, और दुर्भाग्यवश वह कैंसर के चौथे स्टेज में है तो इंश्योरेंस कंपनी सम ऐश्योर्ड का 1% जो कि 20,000 रुपये है, इनकम के तौर पर पॉलिसीहोल्डर को देना शुरू कर देती है।
  • कैंसर के लिए बने खास इंश्योरेंस प्लान में इलाज के लिए नेटवर्क हॉस्पिटल ढूंढ़ने की जरुरत नहीं पड़ती और न ही इसमें इलाज के लिए सब- लिमिट जैसा क्लॉज़ पाया जाता है, जैसा आम हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में देखने को मिलता है। इसमें बीमारी का पता चलते ही एक साथ पैसा दे दिया जाता है, इलाज चाहे कहीं भी करवा सकते हैं।

कैंसर इंश्योरेंस पॉलिसी में ध्यान देने वाली कुछ अन्य जरुरी बातें

  • बीमारी की वजह से मृत्यु होने पर पॉलिसीहोल्डर के परिवार को कोई पैसा नहीं दिया जाता।
  • इंश्योरेंस प्लान लेने के बाद 180 दिन का वेटिंग पीरियड होता है। अगर वेटिंग पीरियड के दौरान व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो प्रीमियम के तौर पर दिया गया पैसा लौटा दिया जाता है।
  • कैंसर इंश्योरेंस  पॉलिसी की एक तय समय अवधि होती है, जिसमें एक ही जगह के कैंसर के लिए इंश्योरेंस में दो बार पैसे नहीं दिए जाते। अगर पॉलिसी के दौरान शुरुवाती दौर के गले के कैंसर का पता चलता है जिसके लिए इंश्योरेंस  कंपनी से पैसा ले लिया जाता है, और चार साल बाद फिर गले में कैंसर की  शिकायत होती है, तो इंश्योरेंस कंपनी दोबारा उसी जगह के कैंसर के लिए पैसा नहीं देगी।
  • क्रिटिकल इलनेस प्लान के प्रीमियम की तुलना में कैंसर इंश्योरेंस प्लान का प्रीमियम काफी कम होता है।  इंडेक्सिंग वाले प्लान का प्रीमियम थोड़ा ज्यादा होता है।

क्रिटिकल इलनेस की अगर बात करें तो कैंसर का नाम सबसे पहले उभर कर सामने आता है। इस बीमारी में बीमार अपने हिस्से का दुःख सहता है और परिवार अपने स्तर पर कई लड़ाइयाँ लड़ता है। जब  कैंसर से लड़ने के लिए इंश्योरेंस कई सुविधाएँ देता है तो समय से इन्हें अपने जीवन में शामिल कर लेने में ही समझदारी है।

 

 

Add new comment